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03:27, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
गुज़र गये वो साल फलाने
जब थे माला माल फलाने
अभी कहां के राजा-रूजा
अब तो हैं कंगाल फलाने
दिल गोया है विक्रम जैसा
है दुनिया बेताल फलाने
सस्ता है बस ख़ून यहां पर
मँहगी सब्जी-दाल फलाने!
एक तो कांटे हर सू यां-वां
उस पर इतने जाल फलाने
कौन बाप है इन मारों का?
किस के हैं ये लाल फलाने!
उन को क्या मालूम ग़रीबी
उनके घर टकसाल फलाने
बतला दूँगा वरना सच-सच
मत पूछो तुम हाल फलाने !
क्या है कोई बात भला क्यों
छोड़ दिया ननिहाल फलाने?
ऊबड़-खाबड़ दिल वालों के
चिकने-चिकने गाल फलाने
वही गुज़िश्ता-साल हुआ जो
वही हुआ इस साल,फलाने!
</poem>