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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
दुनिया की बात छोड़ो जब याद कुछ करोगे
तो याद करते करते नौशाद! कुछ करोगे?

कूचा-ए-बल्लिमारां, ग़ालिब की जां के टुकड़े
हालाते-हाज़िरा पर इरशाद कुछ करोगे?

इस वास्ते भी हम ने बरबाद कुछ किया कम
हम जानते तुम भी 'बरबाद' कुछ करोगे!

आने की वज्ह क्या है हम को पता है आओ
नाशाद कुछ तो हैं भी नाशाद कुछ करोगे!

'बैठे ही मर चलोगे सिर रख के हाथ' या फिर
साहिब! नवा-इलहदा ईजाद कुछ करोगे?

लो फ़ाख़्ता-ए-दिल भी परवाज़ की है धुन में
तो 'वक़्त के मुअय्यन-सैयाद' कुछ करोगे?

कुछ भी नहीं करो पर इतना तो तय है 'दीपक'
बरबाद रह के भी तुम आबाद कुछ करोगे
</poem>