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03:31, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
करो पेल के दुनियादारी और कहो जै राजा राम
चोरी-डाका औ फ़ौदारी और कहो जै राजा राम
ऐसा व्यूह रचा दो आवे ख़ुद ही होके सर के बल
फिर दौड़ाओ बारी बारी और कहो जै राजा राम'
कमा-कमू कर खाना ससुरा, खाना कोई है प्यारे!
खाओ लेके ख़ूब उधारी और कहो जै राजा राम
भीतर भीतर डसते जाओ बाहर बाहर बात करो
मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी और कहो जै राजा राम
जलते घर को और हवा दो और जताओ ऐसे के
तुम को ही है चिंता सारी और कहो जै राजा राम
सेठ-सूठ से ऐश करो फिर कर वालों के छापों पे
काम बताओ 'पल्लेदारी' और कहो जै राजा राम
हस्त कमंडल कान में कुंडल,देह राम'नामी ओढ़े
फूहड़-फूहड़ दो बेगारी! और कहो जै राजा राम
दिन को देवी-शक्ति-माता जाने कैसे कितने ढोंग
रात उसी से फिर गद्दारी!और कहो जै राजा राम
कहीं निहां का रोना गाना रात रात भर चिल्लाना
और कहीं पे जन्नत तारी,और कहो जै राजा राम
बरसों उस के ऊपर तुम थे याने थे ना,हां तो बस
अब के ना'री की है बारी और कहो जै राजा राम
वो तुमको बेहाल करे तो तुम उसको बेहाल करो
'हां-हां-हां-हां खेलो पारी' और कहो जै राजा राम
पहले गोया मांग उजाड़ो उससे खेलो,फिर बोलो
किसने तेरी मांग उजाड़ी और कहो जै राजा राम
झूठ बचाओ स्वांग रचाओ और 'दीप' मरने वाले
बच्चों की है गिनती जारी और कहो जै राजा राम
</poem>