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03:44, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
लौट आएं हरजाई बालम
रजनी है दुखदाई बालम
ऐसा भी क्या गुस्सा-वुस्सा
झगड़ा और लड़ाई बालम!
निगल गयी है प्रीत-पुरानी!
सौतन की अँगड़ाई बालम?
हर पल अश्क़ बहें हैं इनसे
जम गइ देखो काई, बालम!
इक जोगन की घोर तपस्या
किस पापन ने खाई बालम?
जो कहते थे आजा रनिया
मैं कहती, बस आई बालम!
पगली कहते थे ना मुझको!
मैं सच-मुच पगलाई बालम..
बेहोशी से ज्यों ही निकली
चीख़ चीख़ चिल्लाई, बालम..
बाक़ी सारा कुछ अब दीग़र
अव्वल अब तनहाई बालम!
</poem>