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07:14, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
बिन बोले सब बोल गए तुम
'बन्द पड़े पट खोल गए तुम'
गश आने पर गिरना तय था
और नचा कर गोल,गए तुम
होश कहां हो इन आँखों को
ऐसा ''जलवा'' घोल गए तुम
इधर पिपिहिरी हो रोया दिल
उधर बजा कर ढोल गए तुम
'बड़ी गुज़ारिश की थी तुम से
हँस कर टाल-मटोल गए तुम'
'तब से खुल कर पगलाता हूँ
जब से पागल बोल गए तुम'
तो कैसे बिक सकता था फिर
कर के जब अनमोल गए तुम
आंख मुँदी थी और नवाज़िश
जो आंखों को खोल गए तुम
दिल 'सतना' में खोज रहा था
और सनम 'शहडोल' गए तुम
</poem>