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|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
तीस-तीस चाकर तैनात
मुख्यद्वार से उद्यान के आखिरी सिरे तक
बंदूक-तमंचेधारी
कुछ संभाले खुरपी, पानीझरी-तगारी
कुछ झाडू-पौंछा, चौका-बासन
कुछ मिलाने सुर-जी, सर! जी, सर!
सरकारी-दरबारी
रसोईघर से गैराज तक फैले हुए
सेवा चाकरी में लीन
कुल जमा चार प्राणियों के लिए।
हजारों गज धरती, उन्मुक्त आकाष
घनी हरियाली
दूर्वाच्छाछित मैदान, गद्देदार
सैंकडो गैलन पानी प्रतिदिन
बहता धकल-धकल
देह को लहलहाता
हरे को और अधिक हरहराता
कुल जमा चार प्राणियों के लिए।

एक नगरी बहुत प्यारी
इन्द्रलोक-सी न्यारी
जिन्दा है इन चार प्राणियों के अस्तित्व से
धड़कन है दिल्ली की
चार-चार प्राणियों के ये विस्तीर्ण
आवासीय परिसर
ये मुस्कुराते हैं तो मुस्कुराती है दिल्ली
ये उदास हो
तो उदास हो जाती है दिल्ली
दिल्ली जब उदास होती है तो
गमगीन हो जाता है सारा देष
हां, इन चार प्राणियों में
एक कुतिया भी शामिल है।
राष्ट्रीय अखंडता
अन्तर्राष्ट्रीय संबंध
शेयर मार्केट के भाव-ताव
हमारी सभ्यता-संस्कृति की सुई
टिकी है उनकी उदासी और मुस्कान के
अद्भूत संतोल पर
मेरे देषवासियों! देषभक्त मित्रों!
हमें इनकी राहों को
और सुगम बनाना है
धरती-आसमान
हवा, पानी और आग
इन्हें मिलते रहें भरपूर
कहीं मद्धिम न पड़ जाए
इनकी मुस्कुराहट की लौ
पतंगे होते ही रहें निछावर
अहर्निष सगर्व, निःषब्द
हमें अपने देष को बचाना है
हमें अपनी दिल्ली को बचाना है
दिल्ली में इन चार-चार प्राणियों की
अमूल्य धरोहर को बचाना है हमको

अरे, हां!
इनकी संख्या एक रात अचानक
चार से आठ हो गई है
इनकी कुतिया ने कुछ पिल्ले जने हैं।
</poem>
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