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बारिश : दो / इंदुशेखर तत्पुरुष

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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
धरती जब तृप्त होती हैं
रंध्र-रंध्र से उसके
फूटती है असीसें
बनकर हरी दूब।

षिषुओं के लिए
झर-झर आता
स्तनों से अमृत।

</poem>
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