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12:14, 26 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
सहमी रहती थी किताबें अक्सर
तुम्हारी चमकदार
सम्मोहक आंखों में न जाने क्या देखकर।
सिमटी-सी पड़ी रहती डायरी
दराज की ओट से टुकुर-टुकुर
देखती तुमको
कभी निकलती भी बाहर तो जा लौटती
फिर वहीं निःशब्द अनखुली-सी
अब, जब नहीं हो तुम
घर-भर में धमाचौकड़ी मचा रही पुस्तकें
घूम रही इधर-उधर
फड़फड़ा रहे खुली हुई डायरी के उत्कंठित पन्ने।
यह कहीं छटपटाहट तो नहीं शब्दों की
जो हो रहे उतावले
बाहर निकल आने को।
</poem>
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