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|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
अच्छा ही हुआ जो हमने
अलग होते समय
लौटाया नहीं परस्पर वह सामान
जो कर चुके थे अर्पित
एक-दूसरे के लिए
वर्ना, मैं तो कंगाल ही हो जाता शब्दशः

लेकिन यह भी तो हो सकता था अगर हम
लौटाने लगते सब-कुछ
ज्यों का त्यों
तो टल जाता एक बार फिर
विलग होने का निर्णय।
</poem>
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