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सोचो / कैलाश पण्डा

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उभरती हुईएक रिक्त स्थानसुनहरी कल्पनागति देता अंजानअन्तर मन मेंलहरे बनतीभीड़ भरे जीवन हर श्वास के स्वर मेंपा लेना चाहती थाहपलता स्वप्नअन्ततः प्रेषित होतीधड़कन चलतीउन्मुक्त गगन कोदृढ़ राह के आधार परशांत विराटलौह पथ गामिनी सीअनन्त कंकड़ पत्थर के पठार परजीवन की छाया मेंगतिकुछ करना चाहतीतीव्र तराश परगांव, राष्ट्रपलता विभिन्न आकार प्रकार परसरसती विकटता के मध्यबंधन से मुक्तज्ञान गार्गीमानो सर्वत्र हो युक्तनवंरग लिए नर नीरोह सासंकीर्ण संकायों दिवाल केपीछे भीभ्रम को तोड़कोई श्वास लेतावह कहतीगुनगुना रहासब मेरे अपनेयापन करतामैं सबकोक्षण-क्षण तुम्हारी तरहक्योंकि उसका वेगसोचो !ऊर्ध्वगामी जो होता है।
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