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कलम के नाम / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
एक प्रेम भरी पाती
कलम के नाम
जो लिखता हूं
सहर्ष स्वीकार करती है
जो चिंतन देता हूं
सहती है चुप-चाप
ना विरोधाभास
ना छुपाव
मेरे कथ्यों को
कैनवास पर उकेरती है
मेरे विचारों को
शब्दों के माध्यम से
संवारती है
मेरी संवेदनाओं को
समझती है
देती है शकून
मेरी शर्ट की जेब में
देखने वालों को
लटकती प्रतीत होती है
मै तो रखता हूं उसे
ह्रदय के समीप में
मेरी तो
वही तलवार
वही ढाल
वीणा, सुर,ताल
मन झंकृत तो
बज उठती है
प्रतिकार हो तो
खनक उठती है
मेरे सामने
तुला बनकर
तोलती रहती है
मेरी भावनाओं को हर क्षण।

</poem>
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