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अश्रु कणिका / कैलाश पण्डा

165 bytes added, 10:05, 27 दिसम्बर 2017
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तुम्हारे नकारने अश्रु कणिकातुम हर्षित मन सेमेरे अस्तित्व मेंभाव सुनहलेकमी नहीं आयेगीस्वर्णिम कण सेकमी नहीं आयेगीअनगिनत गहरेमेरा सूक्ष्म भी तोबिम्ब लिये चरसेपरमात्मा के सान्ध्यि मेंगिरती हो !पल रहा हैतापित ह्रदय सेछोटेमानो बूंद-छोटे अणुओं बूंद घट सेनिर्माण हुआ मेरे स्थूल काचेतना के चिर शिखर परतुमने गौर से संवेदना की संवाहिका बनबहती होतुम कब देखापाहन से निकसीमुझ शुद्र कोगरलराज संग राचीतुम्हारी नजरों मेंहो मेघों का गर्जन जबअये घृणा की बेलातब पृथ्वी के तृण-तृण का सृजन।सूक्ष्म स्थूल कारण से परेहरियाली मंडारातीअस्तित्व को देखोमूक नहीं कोयल रह पातीमेरे और तुम्हारे मध्यमयूरा नित्य राग आलपेअंतराल को महसूस करोनूत्य नूतन कर पातेअवलोकन तो करोसुख गागर भी तब सागर बन जातेसत्य का। अश्रुकणिका पाया तुम से स्नेह अपार।
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