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13:27, 27 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
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<poem>
बीज मिट्टी में जा मिला
श्रद्धा का पात्र बन गया
तुमने जाना
बलिदान दिया उसने
सत्य ही तो है
किन्तु मैं तो यही कहूंगा
मिट्टी को पहचान लिया
उसके सानिध्य को पाकर
वह वृक्ष बन गया
मंगल करता सर्वत्र
फल देता मधुर
रसास्वादन लेता जन-जन
तप्त धूप में
पथिक लेता विश्राम
सूक्ष्म कीट पतंग
कितने ही पलते
पंछी बनाते नीड़
वन वाटिका विकसती
बीज मिट्टी में जा मिला
तुम्हारे लिए।
</poem>
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