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|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
एक युद्ध दूसरे युद्ध को
जन्म देता
दूसरा तीसरे को
अनवरत
परम्परा कर निर्माण होता
मानवता का निवार्ण होता
प्रचण्ड अग्नि पथ पर
विकसित होती चिंगारी
समाधान समस्याओं का
रक्तपात से होता तो
चाँद से भी आगे
निकल गये होते हम।
विकसित से
विकासशील की चौखट पर
संग्राम की आहटों ने पहुंचाया
नागाशाकी हीरोशिमा के अंत से
अनभिज्ञ तो नहीं ?
कुत्सित बुद्धि के बंधन में
महाप्रलय को आमन्त्रण देते
श्मसान को देखो है हमने
मिट जाता अस्तित्व
होना न होना
महत्व नहीं रखता तब।
</poem>
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