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13:24, 29 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार'
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सासा सूं इतरी आसा क्यूं,
कूख जायेङा नीं स्वीकार करै,
डांगा टेकै जायोङा जद,
माँ किणबिध जीवण पार करै।
रति रो माजनो है जिणरो,
बै ढ़ांढ़ा खङ्या उजाङ करै,
रळकाओ बानै सोटां सूं,
बै सैंसू बत्ती बिगाङ करै।
मायङ री जिणनै शान नहीं,
बै करमखोङला है नाजोगा,
अैङै नाजोगां रो नास हुवै,
आ बात घणी जरूरी है,
भासा भूमी भख मांगै सदा,
भख देणूं भोत जरूरी है।।
</poem>