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कांई व्है? / मनोज चारण 'कुमार'

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<poem>
दुर्दशा इण देश री देखूँ, धक-धक धड़के हीवड़ों जी,
बारे भेजूँ बेटी ने तो, कांपे म्हारो जीवड़ों जी,
कांपै म्हारो जीवड़ों, जाणे हियो हबोळा खावे है,
जीव टांगने रैवे टंगेडों, बेटी जद ताई आवे है।।

जाणे कुणसी ठोड़ कुलखना, मिलज्या म्हारी बच्ची नै,
हिडकायेड़ा गंडक बणके, बोटी खाज्या कच्ची नै,
बोटी खाज्या कच्ची बै, बानै बिल्कुल सरम नी आवे है,
सरमबायरा फिरे डबकता और भचीड़ा खावै है।।

फिरे भटकता कुकरमी ऐ बोतल में तेजाब लियाँ,
कद ताई बचसी डिकरड़या और बचासी लाज कियाँ,
और बचासी लाज कियाँ, दुस्टया रो किण बिध नास हुवे,
धरती उथलो खाज्या जिस्या भारत में अपराध हुवे।।

एक जमानू होतो बो भी, राम अहिल्या तारी ही,
भरी सभा मैं द्रोपती लुटती, कृष्ण बढ़ा दी साड़ी ही,
कृष्ण बढ़ा दी साड़ी ही, अब लूट रिया हैवान अठे,
घर रा ही जद लूटण तुलज्या, आय बचावे कुण बठे।।

बहन भाई रो रिस्तों मोटो, होतो धरम रो मोटो धणी,
आज भाईड़ा इज्जत खोसे, हुवे बैन रो कुण धणी,
हुवे बैन रो कुण धनी, अर कुण किणरो विश्वास करे,
हुया कलंकित रिस्ता सगळा, अब कुण किणरी आस करे।।

दिल्ली मैं तो दुस्टया देखो, मार लई कई दामणिया,
घर स्युं बारे निकलता डरपे, आज बठे री कामणिया,
आज बठे री कामणिया, आँसू भरती सवाल करे,
कुण बचावे लाज हमारी, कृष्ण बिना अब कियाँ सरै।।

बेटी बहन भाणजी जलमे, घर रो मोटो भाग हुवे,
बेटी बंस बधावणवाळी, कुळ रो आगे नांव हुवे,
कुळ रो आगै नांव हुवे, अर दोय कुळा री प्रीत बणे,
माता करज चुकावे भू-रो, जिण दिन बा कन्या ने जणे।।

इण समाज ने अबे जरूरत, कोई नयो गोपाल बणे,
रेवे सुरक्षित पांचाली, अब शिला अहिल्या नहीं बणे,
अब शिला अहिल्या नहीं बणे, तो बणनू पड़सी राम अठे,
फिरे भटकता इन्द्र बणेड़ा, मारो बाने मिले जठे।।
</poem>
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