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झूलना / गब्रिऐला मिस्त्राल / अनिल जनविजय
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20:02, 4 जनवरी 2018
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सागर में
उठ-गिर रही थीं
सागर में
लहरें हज़ारों-हज़ार,
चढ़कर जिनपर अनुपम झूला वह रही थी झूल।
तभी सनेही समुद्र की
जैसे
गूँजी यह पुकार
वह कह रहा था मुझसे — झूल, मेरे बच्चे, झूल।
अनिल जनविजय
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