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सागर में उठ-गिर रही थीं सागर में लहरें हज़ारों-हज़ार,
चढ़कर जिनपर अनुपम झूला वह रही थी झूल।
तभी सनेही समुद्र की जैसे गूँजी यह पुकार
वह कह रहा था मुझसे — झूल, मेरे बच्चे, झूल।
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