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मुक्तक / कविता भट्ट
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रेत को मुट्ठी में भर करके हम फिसलने नहीं देते ।
वक्त कितना भी हो मुश्किल ,खुद को बदलने नहीं देते॥
मेरे भरतू का बचपन, पिता का दुलार लौटा दो॥
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वीरबाला
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