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08:55, 29 जून 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
दिल में यादों का धुआँ है यारो !
आग की ज़द में मकाँ है यारो !
हासिल—ए—ज़ीस्त कहाँ है यारो !
ग़म तो इक कोह—ए—गिराँ है यारो !
मैं हूँ इक वो बुत—ए—मरमर जिसके
मुँह में पत्थर की ज़बाँ है यारो !
नूर अफ़रोज़ उजालों के लिए
रौशनी ढूँढो कहाँ है यारो !
टिमटिमाते हुए तारे हैं गवाह
रात भीगी ही कहाँ है यारो !
इस पे होता है बहारों का गुमाँ
कहीं देखी है ये खिज़ाँ है यारो !
हम बहे जाते हैं तिनकों की तरह
ज़िन्दगी मील—ए—रवाँ है यारो
ढल गई अपनी जवानी हर चंद
दर्द—ए—उल्फ़त तो जवाँ है यारो
नीम—जाँ जिसने किया ‘साग़र’ को
एक फूलों की कमाँ है यारो!