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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

सहर का रंग गुलों का निखार है तुझ से

चमन में आमद—ए—फ़स्ल—ए—बहार है तुझ से


चराग—ए—बज़्म तेरे ही लिये फ़िरोज़ाँ है

फ़ज़ा—ए—शेर—ओ—सुखन साज़गार है तुझ से


तेरे बग़ैर हैं वीरान वादियाँ दिल की

ख़िज़ाँ—नसीब दिलों को क़रार है तुझ से


तेरे ही दम से हैं आबाद शाद मयख़ाने

नज़र— नज़र में सुरूर—ओ—ख़ुमार है तुझ से


मताए—हुस्न—ए—बहाराँ है कितनी दिल आवेज़

ये उम्र भर ऐ खुदा ! आश्कार है तुझ से


तुझी से ख़ाना—ए—दिल में है रौशनी ऐ खुदा!

मेरी नज़र में खिज़ाँ भी बहार है तुझ से