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चांद-तारे / कुमार मुकुल
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}}
कांसे
काँसे
के
हसिए
हँसिए
सा
पहली का चांद जब
और तारा
तेजी
तेज़ी
से दूर भागता
सिमटता जाता है
खुद
ख़ुद
में
आकाश में और भी तारे हैं
जो जलते नहीं टिमटिमाते हैं
पर वे चांद को
जरा
ज़रा
नहीं लगाते हैं
निर्लज्ज चांद
अनिल जनविजय
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