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14:08, 26 मार्च 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=करणीदान बारहठ
|अनुवादक=
|संग्रह=झर-झर कंथा / करणीदान बारहठ
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<poem>
धरती रा धारणियां चालो, धरती में धान उगावण नै।
झुक-झुक झूमै हा बादलिया,
धरती रो गात भिग्योड़ो है।
आ बणी पदमणी पूरबणी
नैणा में प्यार लिख्योड़ो है।
हल हाल मेलल्यो कांधै पर,
बलदां रै डालो पंजाली।
सिर फुड़ा भाजग्यो काल देख,
भाजी किरसै री कंगाली।
धरती रा धारणियां चालो, धरती में धान उगावण नै।
धरती रा धारणियां चालो, धरती में धान रूखालन रै।
अै खेत हिराली मारै है,
डांगर है घणा हिलावड़िया।
आ चूणो आखो चर ज्यासी,
जद खेतां रमसी टाबरिया।
डूंचो चढ़ डांकर ललकारां,
चिड़ियां नै टाट उड़ावैली।
जद रात जगावालां आपां,
दीवाली खीर जिमावैली।
धरती रा धारणियां चालो, धरती रो धान रूखालन नै।
धरती रा धारणियां चालो, धरती रो धान बुहारण नै।
पाक्यो अब धान पुकारै है,
खेती नै आज कटावण नै।
हीरा माटी में मिल ज्यासी,
चट चालो नाज रूखालन नै।
अै सूदखोर सौदागरिया,
ऊभी खेती न खा ज्यासी।
किरसै री खरी कमाई पर,
ओलै सी ओला पड़ ज्यासी।
धरती रा धारणियां चालो, धरती रो धान बुहारण नै।
</poem>