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|संग्रह=कठै गई बा'... / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
आओ आपां प्रेम करां
पछै चायै कीं' करां

प्रेम मिणत नै करै
हळकौ फुळकौ
अर दुख रै टैम
घोळै मिठास

तद
आओ आपां
प्रेम री आग
जगाए राखां

अै बातां सुणण में तो
घणी चोखी है
पण
प्रेम री आग
अेकर बुझ्यां पछै
फेरूं जगाणी
भौत ओखी है।
</poem>
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