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चोखौ मिनख / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
कई मिनख
जद मिलै
दूजै मिनखां सूं
तद
बाथां में
भींच'र
आपरौ
प्रेम दरसावै

मीठी-मीठी करै बातां
अर पछै
राफां ढीली करता
आपरै राह लाग ज्यावै

कित्तौ चोखौ लागै

पण
आखै जग में
भांत-भांत रा
मिनखां बिचाळै
कई मिनख
खुद रौ
दरद लुकोय'र

दूजां नै
मुळकान दिखावै

कित्तौ ओखौ है
खाली आ' कुहावणौ
कै
मिनख
भौत चोखौ है।
</poem>
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