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07:38, 1 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[मीठेश निर्मोही]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
हळ-बळद जोत
खेतां
ऊमरा काडै
थूं।
कलम खोल
कोरै पांनै
आखर मांडूं
म्हैं।
ऊमरां में निपजै
धांन
आखरां में उपजै
मांन।
गुमांन रै गोखां
बधतौ
ठौड़-ठौड़ बधाईजूं
म्हैं
पण
म्हारौ मांन हारै
थारै लारै।
</poem>
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