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17:28, 4 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं।
झूट बोलूँगा नहीं सो चुप रहूँगा मैं।
आप चाहें या न चाहें आप के दिल में,
जब तलक मर्ज़ी मेरी तब तक रहूँगा मैं।
बात वो करते बहुत कहते नहीं कुछ भी,
इस तरह की बेरुख़ी कब तक सहूँगा मैं।
तेज़ बहती धार से बिजली बनाऊँगा,
प्यार से बहने लगी तो सँग बहूँगा मैं।
सिर्फ़ सुनते जाइये कुछ और मत कीजै,
कीजिएगा इस जहाँ में जब न हूँगा मैं।
</poem>
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