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माँ / भाग ६ / मुनव्वर राना
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14:13, 6 जुलाई 2008
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
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