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कलम रा कारीगर / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
कलम रा कारीगर हो थे
लिख सको हो-चांदणी
मांड सको हो-बैंवती पवन रा चितराम
आपरी संवेदना-सगती सूं
महसूस कर सको हो
आंसूड़ा में घुळ्योड़ा न्यारा-न्यारा रंग
थे बडा जादूगर हो
जीव रै भीतर पूग’र
रच सको हो
उणरै हरख
कोड
द्वेष
नेह
खुसी
ईष्र्या
अहंकार
कर सको हो भावां रो संतुलन
थे जाणो हो मानखै रै मनोविग्यान नैं
रच सको
स्त्री री चेतना
उणरी अलेखूं पीड़ावां
बांच सको उण री मनगत नैं मूंडै सूं
पण जद कामकाजी मां रै हांचळां सूं
ढळकै नीयत बगत माथै
ममता री धार
इणनैं जे मांड सको
बांच सको, रच सको, लिख सको
आपरी कविता, गीत या रंग री कूंची सूं
उण दिन थे साच्याणी
मन रा रचारा हो जासो।
</poem>
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