|रचनाकार=ॠतुराज
}}
अचानक सबकुछ सब कुछ हिलता हुआ थम गया है<br>भव्य अश्वमेघ भव्य अश्वमेघ के संस्कार संस्कार में<br>
घोड़ा ही बैठ गया पसरकर<br>
अब कहीं जाने से क्या क्या लाभ ?<br><br>
तुम धरती स्वीकार स्वीकार करते हो<br>
विजित करते हो जनपद पर जनपद<br>
लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो<br><br>
लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियांस्त्रियाँ<br>गीत नहीं कोई किस्सा मजाक किस्सा मज़ाक सुना रही हैं-<br>राज राजा थक गए हैं<br>
उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब<br>
उन्हें सिर्फ उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही<br>
अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए<br><br>
राजधानी में सबकुछ उपलब्ध सब कुछ उपलब्ध है<br>बुढापे में सुंदरियांसुंदरियाँ<br>होटलों की अंतर्महाद्वीपीय परोसदारियांपरोसदारियाँ<br><br>
राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं<br>
रसोई में महायुद्धों की चटपटी