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अजै ई हूं सेस / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
उघडग़ी है
माथै पर कीं
अबखायी री लीकां
उतरगी है आंख्यां माथै
सुपनां री किरकिरी री पीड़
झांकण लागी है ओलै-छानै
कनपटी माथै चांदी,
हथेळ्यां रो कंवळो-सो लखाव
आटो लाग्योड़ा नखां
अर आधी उतर्योड़ी नखपालिस
रै बिचाळै गम्योड़ी कठैई
फाट्योड़ी अेड्यां रो खुरदड़ापणो
चादरै में अळूझनै बताय जावै
कै सावळसर न्हायां ई
होयग्यो है हफ्तो-खंड
सुवाद फगत आंसुड़ां रो
चेतै रैयो है
नौकरी अर घर नैं
संभाळण रै खोरसै में
मगसी पड़ जावै मैंदी
अर होठां लाली रै सागै
उणियारै रो रंग
थनैं देख’र लागै कै
हां म्हैं अजै ई हूं कीं सेस
कीं विसेस
नींतर तो
घुळै है बरतण मांजण रै साबू जियां
कदै-कदास देख लिया कर जिंदगाणी
म्हारै होवण सारू।
</poem>
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