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13:30, 8 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
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<poem>
कंवळै काळजै उकळै
ऊंडै कठैई
डाफाचूक अंतस-अगन री कळझळ
सोखती रैवै
म्हारी तागत री सी’ल....
आकळ-बाकळ
मन री फडफ़ड़ाहट माथै
बजाय देवूं
कोई ऊल-जुलूल फिल्मी धुन
लोक-बैवार रै तानपूरै
अर बसबसतै काळजै
घावां भेळो हुय जावै
कोई नुंवो घाव
रिस्तां री सांकळ रो !
कद होवूं मुगत
कियां जाणूं खुद रो होवणो
होवणो चावूं
सा’व थिर-स्यांत चित्त
पौर-पौर
विरोध अर
उपराथळी पसरîै विचारां री ढिगली में दबी
म्हारी ‘क्लॉस्ट्रोफोबिक’ चींत
जावणी चावै
हरियल कंदरावां में
निजू मून सागै
जीवणी चावै
म्हारै पांती री स्यांति!
</poem>
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