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आवारा / मजाज़ लखनवी
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17:06, 19 जुलाई 2008
एक दो का ज़िक्र क्या, सारे के सारे नोंच लूँ <br>
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ <br> <br>
(Source: http://www.india-world.net/shayari/Majaz-Awara.pdf)
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