Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}

<poem>
कितने ही सीपी
सागर में
किसी एक में मोती मिलता ।

सतरंगी काया
छल करती,
झूठ-मूठ के
रंग बिखरती,
आकर्षण के मद में
पागल
क्षणभंगुर जग में
हठ धरती,
फ़ेन उगलता उथला सागर
गहरे पानी जीवन खिलता |

लाभ-हानि के भँवर
फँसे मन,
सम्बन्धों में है
ख़ालीपन,
पूर्ण समर्पण बात पुरानी,
ढीले पड़ते
सभी दृढ़ कथन,
छोटे से सादे जीवन को
जकड़े जाती बड़ी जटिलता ।

जगत मोह के पाश
बँधा है,
जीवन इक गोरखधंधा है,
माया के आगे
हर मानव
आँखें हो कर भी
अंधा है,
अपने-अपने स्वार्थ सभी के
पर-पीड़ा से कौन पिघलता ।

कितने ही सीपी सागर में
किसी एक में मोती मिलता ।
</poem>