|संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर
}}
[4] अपराजित
हो नहीं सकती पराजित युग-जवानी !
नव-सृजन की कामना को,
सर्वहारासर्र्वहारा-वर्ग की युग -
युग पुरानी साधना को,
आदमी के सुख-सपन को,
शांति के आशा-भवन को,
और ऊषा की ललाई
से भरे जीवन-गगन को,
मेटने वाली सुनी है क्या कहानी ?