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12:10, 29 मई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक
|अनुवादक=
|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
धान तो धान
धान री धांस नै
ढ़कणी ढ़क्कणियां आदमखोरा
काळरूप/ कुमाणस
घेरिया घालतां-घालतां
घरां में घाल देवै घुरी
घात लगावै जीवतै जीवां नै
भूख हिंसक सो
देखतां-देखतां
गुर्रावतो गूंजतो
आंख्यां रां मटरका करतो
निवैड़तो रैवै
गांवां रा गांव।
पींवतो रेवै
लोगां रो लोई
पांगरतो जावै
बां रै ही घरां में।
(तूं इण वास्तै)
सुख-दुख नै
करम री लिखी
अमिट लोक मान‘र
लीकलीक
चालणियां रो
सागी छोड़
ध्यान दे बां मिनखमार
मक्कारां कानी
जिक्का धरम-करम रा
भाग-भरम रा
कुशल कारीगर है
सुख-दुख रो
बंटवारो
अै करसी न्यारो-न्यारो
स्वारथ रा सागी बाप
आपरै पाळै राखसी
सुख-सुविधावां रा
अखूट भंडार
परायै पाळै में पाळसी
दुख-दाळद री बाळदां।
मासी मोत रा लाडेसर
भूख स्यूं बांथैड़ो कदतांई
अबै तूं पाळा बदल
थ्यावस त्याग
ऊंघ मत/जाग
</poem>
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