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|संग्रह=अंतस तास / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
सुण सावण री डोकरी !
थारो सावणियो कद बरसैलो
धरती रो धन रेत रूळै रै
जीव जगत कद हरसैलो।

बुसबुसिया भरती धरती रै
कुण माथै पर हाथ धरै
सगळा मौसम मांदा पड़ग्या
कुण बूझै कुण कोड करे
बिलख बात बूझै बायरियो
कद म्हारो हिवड़ो सरसैलो।

घाणी माणी जूण मिनख री
आंख मींच आ नित भागै
धुंवां उठै धरती माथै
कद बळी बेल रै फळ लागै
कूंपळ कोड करै बिरखा रो
रूंख फळां नै तरसैलो।
घटा घणी आभै घिर आई
गजब बीजळी गरजै ही
पांख पंखेरू आस करी
पण तीतरपंखी बरजै ही
भरै खेत नै रेत चाटसी
बीज बूंद नै तरसैलो।
सुण सावण री डोकरी
थारो सावणियो कद बरसैलो
धरती रो धन रेत रूळै रै
जीव जगत कद हरसैलो।
</poem>
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