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|संग्रह=अंतस तास / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
बळती बाजै बावळिया
करलै मानखै रो मोल।
दोरो जीणो रै साथीड़ां जठ्ठै
चौड़े-धाड़ै पोल।।

भुजबळ तोल ताण लै मुट्ठी
खारो बणकर जी।
नाजोगे मिनखां नै पड़सी
जीणो जे‘र नै पी
मिनख-जूण री जय बोलणिया
खुल्लम खुल्ला बोल।
दोरो जीणो रै साथीड़ां अट्ठै
चोड़ै धाड़ै पोल।

आंख्यां छोड्यो धरम आपरो
काना पड़ी कुबाण
माथै री मत मांदी पड़गी
न्याय ताकड़ी काण
अलख जगा पतवार थाम लै
नैया डांवां डोल।
बळती बाजै रै बावळिया
कर ले मानखे रो मोल।

मीठी लागै पीड़ पावणी
खारो दुःख रो सीर
अन्तस रै आभै में उमड़ै
बादळ नैणा नीर।
गूंगै गेले गंजलां रो
मेट देवो झोड़
भूंडा लागै छान-झूंपा
आछो लागै खोड़
आपै ही मरै तो-
कीनै देवो ला दवा।
बेगो चालो, जीमो बेटा, चीकणा कवा।

मानखै नै मार मीठी रसोई बणाई है
फूट रोड़ै फूलां थारी सेज सजाई है
जीमो-जीमो बेटा माया सामै पगां आई है
रोता रेसी लोग थांरै बाप री कमाई है
काळजै में लागी
थारी लाय बुझा
बेगा चालो, जीमो बेटा, चीकणा कवा
</poem>
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