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10:08, 21 जून 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
रोज़ कहता है मुझे चल दश्त में
ले न जाए दिल ये पागल दश्त में
दर्ज होनी है नई आमद कोई
हो रही है ख़ूब हलचल दश्त में
एक मैं हूँ एक हैं मजनूं मियाँ
हो गए दो लोग टोटल दश्त में
इश्क़ में अपने अधूरा पन जो था
हो गया आ के मुकम्मल दश्त में
रात भर आवारगी करते रहे
एक मैं इक चाँद पागल दश्त में
</poem>