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11:54, 25 जून 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मानसिंह राठौड़
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<poem>
भगतवसल री लीला भारी,
रूप अनंत रचाया ।
मूरत सौणी है ममता री,
अंबा नांव उपाया ।।
नव महिणा रेवै अध निरणी,
पूत पेट में पाळै ।
जाये रे सुख खातर जणणी,
गात आपरो गाळै ।।
सकल रात गीला में सोवै,
सूखे पूत सुलावै ।
आखी रात ओजको करती
आँख्यां नींद न आवै ।।
आंसूड़ा वा पोंछ आपरा,
रूड़ी निजरां राखै ।
दिवस पूरो हाजरी देवै,
थमे नहीं भल थाकै ।।
लाडां कोडां रखै लालनैं
अंतस नेह अपारा ।
दु:ख में जद लाल नै देखै,
पुरसै नेह पिटारा।।
तोड़ बाँध वे तकलीफां रा,
मन मांही मुसकावै ।
प्रीत रीत सूं घर फुलवारी,
मधरी सी महकावै ।।
ईस तणो अवतार कहीजै,
नित-नित शीश निवाऊं ।
अनंत है आशीष आपरी,
जामण वारी जाऊं ।।
</poem>