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18:42, 27 जून 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिकेश पटवारी
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|संग्रह=
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<poem>
ना कोई मेरै खिलाफ शिकायत, डायरी नही रिपोट पिता,
हाथ जोड़कै मैं न्यू बुझु, के कुछ देख्या खोट पिता || टेक ||
चोरी ठग्गी बेईमानी, और ना बदमाशी करी मनै,
काटटे नहर नही रजबाहे, ना कोई पासी करी मनै,
जेल तोड़ कै मुलजमान, नही निकासी करी मनै,
फीम, तम्बाकू, भंग, चरस, नही खुलासी करी मनै,
नही शराब नाजायज के, भर-भर बेचे बोट पिता ||
ना लाइन, ना तार कटाये, ना बन्द टेलीफून करया,
ना चोरी ना ठगी डाका, ना कोए मनै खून करया,
ना दुखिया ना गरीब सताया, ना तंग अफलातून करया,
राज विरोध कानून मनै, नही त्यार मज़बून करया,
नही ख़रीज ना भरे रुपये, नही बणाये नोट पिता ||
ना तागू ना गठकतरा, ना राहजन जुएबाज कोई,
इश्तिहारी मफरुर ठगों से, ना मैं रखता साझ कोई,
एक तरफा ना करी बगावत, नही दबाया राज कोई,
राज विरोधी कांग्रेस काउंसिल, नही बणाया समाज कोई,
बिना टिकट गाड़ी म्ह बैठकै, चाल्या नही विदोट पिता ||
मेरी आखरी सुणो पिता जी, प्राण पवन म्ह लौ होंगे,
बिना सबूत सफाई के, मेरे गवाह शहर म्ह सौ होंगे,
ताज इंद्रराज किताब पढे बिन, गलत फैसले जो होंगे,
साच्ची करकै मान पिताजी, एक खून नही दो होंगे,
हरिकेश भी गेल चिता कै, जलै जोट की जोट पिता ||
</poem>