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18:37, 28 जून 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरिकेश पटवारी
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|संग्रह=
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जर-जोरू-जमीन के कारण, बड़े- बड़े मर खपगे,
घर लुटगे बरबाद हुए, मुल्कों में बेरे पटगे || टेक ||
जर के कारण पुत्र-पिता, माँ जाये लड़ते देखे,
जर कर कारण हवालात म्य, मुलजम सड़ते देखे,
जर के कारण चोर-लुटेरे, परधन हड़ते देखे,
जर के कारण खून तलक हो, डाके पड़ते देखे,
जर के कारण एक-एक के, सो-सो के हिस्से बटगे ||
जोरू के बस ब्रह्मा-विष्णु, कृष्ण मुरारी होगे,
जोरू के कारण ऋषि-मुनि, योगी घरबारी होगे,
जोरू के कारण राव-बादशाह, सेठ भिखारी होगे,
जोरू के कारण शूरवीर, तेग दुधारी होगे,
आगा रोपण वाले, जोरू कारण पीछै हटगे ||
जमीन के कारण लाखो मरगे, नर और नारी जहर घुटगे,
जमीन के कारण रामचन्द्र जी के, घरबार छूटगे,
जमीन के कारण बड़े-बड़े, प्यारा के प्रेम टुटगे,
जमीन के कारण कौरव और पांडवों के, मोन्ड फुटगे,
जमीन के कारण मिनटों म्य कुछ के, कुछ ढंग पल्टगे ||
सबका कारण लोभ मूल फंसा देश, लोभ के बस म्य,
त्यागी - बैरागी देखे, दरवेश लोभ के बस म्य,
नर करते देखे नारी का भेष, लोभ के बस म्य,
गाम कसुहन कैद रहा हरिकेश, लोभ के बस म्य,
जर्मन रूस जापान लोभ के कारण, जंग म्य डटगे ||
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