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लौहस्तम्भ-साखड़ा एक मानवहाड़ कँपातीजो शीत- शिशिर में बर्फीली हवा,रात- दोपहर मेंचुभती धूपया अंध तिमिर मेंसहता जाता इसमें भी तो हैं हीसंवेदनाएँइसे भी तड़पातीहैं वेदनाएँयद्यपि, कालगतिकिन्तु, तथापिन विचलित होताअश्रु बहाता,न कभी भी रोता;मातृभूमि केउर- माल सजाने,गौरव- मोती साहस के धागे में सदा पिरोताविजय-इतिहासअपने सारे यह बलि चढ़ातारक्त-संबंधहै राष्ट्र-परिवारइसका सारा,भारत का महान'''वीर जवान'''कविता नित करेदण्डवत प्रणाम.-0-
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