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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
दुख सूं गुजरी रात सारी
यूं ई बीतरी जिन्दगाणी

धरती तिरसी रैई तरसती
कदै न बरसी बून्द पाणी

चैन-चून्दड़ी कदै न ओढ़ी
मूं पीड़ री हूं पटराणी

मीठी मुळक रची ना होठां
आंसू जीवण री सैनाणी

कठै ना मिल्यो सुख-सुआगत
करै दुख सगळै मिजमानी

मन रो मैल सूनो सिसकै
सुख री हूं दुवागण राणी

दुख री जमीं, जळण-अकास
जीवण कुळण है आ जाणी

सुख सूमं रिस्ता नीं निभ्या
दुख सूं है पैछाण पुराणी
</poem>
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