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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
हाथां मांय मांड रैयी है
बा छोरी मैंधी
मुळकती-मुळकती
कोसीस करै ओळखण री
उण उणियारै नै
जिको आपरै सागै
लेय'र जावैला अठारै दिनां पछै।

ज्यूं-ज्यूं मैंधी रचैला
छोरी रै हाथां
रच्योड़ी
मैंधी मांयकर पळकैला
बो उणियारो।

अंधारै री रात मांय
रच्योड़ी मैंधी रा हाथ
ध्रुव तारो ऊगै है
छोरी रै हाथां
उण उणियारै भेळो।

छोरी रा हाथ
हाथ नीं है
जीवण रा सुपना है
मैंधी रा हाथ।
</poem>
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