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07:02, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
आभै री बूंद
पाछी समा जावै है
माटी री गोद
{{KKBR}}
मा तो बस मा
देवता भी तरसै
मा खातर
{{KKBR}}
है कठै घर
गुमग्या सै आंगण
बस होटल
</poem>
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