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07:08, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
खेल खेलण
थूं आयो है मैदान
मन सूं खेल
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बीज में रूंख
रूंख माय है बीज
सृस्टि रो चक्र
{{KKBR}}
ज्ञानियां रो तो
सदीव रै‘यो घर
आखो संसार
</poem>
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