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07:44, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
रचनाकार
नुंवी दुनिया रच
सुपनां ना जी
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बाजारवाद
मरै है साहित री
आत्मा‘र मोल
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टूट तारै नैं
कोई भी नईं देखै
ध्रुतारो बण
</poem>
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