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तुम आई / रंजन कुमार झा

1 byte removed, 13:03, 1 अगस्त 2018
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में
खुशियों से भींगे दृग भींगी आँखों ने गालों को ही मझधार किया
</poem>
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