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दर-दर जा छाया
गोद हो गई सूनी।
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पीड़ा थी भारी
तुम खिलखिलाई
फिर फूटी रुलाई
न रोके रुकी
बरसाती नदी-सी
धैर्य-तटबंध टूटे।
(13-8-18)
</poem>