गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
झीलें है सूखी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
237 bytes added
,
16:16, 17 अगस्त 2018
दर-दर जा छाया
गोद हो गई सूनी।
51
पीड़ा थी भारी
तुम खिलखिलाई
फिर फूटी रुलाई
न रोके रुकी
बरसाती नदी-सी
धैर्य-तटबंध टूटे।
(13-8-18)
</poem>
वीरबाला
4,857
edits