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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''ब्रह्मा जी नै रची सृष्टि, सुण इतिहास पुराणा,'''
'''लाख चौरासी जियाजुन नै, पड़ै धरण पै आणा || टेक ||'''

अत्री घर चन्द्रमा जन्मया, कुख अनसुईया सती की,
ब्रह्मा जी नै उपाधि देदी, नक्षत्र अधिपति की,
राज नशे मै जा तारा खोसी, बहूँ ब्रहस्पति की,
फेर चन्द्रमा घर बुध होग्या, जब तारा गर्भवती की,
न्यूं महादेव के गुरु अंगीरा नै, पड्या पूत समझाणा ||

विश्रवा मुनि होया तपस्वी, पुलस्त मुनि जाया,
केशिनी हिड़िम्बड़ा हुई निमाणी, दोनों से ब्याह रचाया,
केशनी के कुम्भकर्ण-रावण, हिड़िम्बड़ा से कुबेर बताया,
72 चौकड़ी राज रावण का, कुबेर अधीन धन माया,
अपनी मौत नै हड़ ल्याया रावण, करके भगमा बाणा ||

भरत श्रेष्ठ वसु वीर्य से, मछली गर्भवती हुई,
मछली उदर से जन्म ले लिया, पुत्री सत्यवती हुई,
शुक्ल पक्ष के चंद्रमा ज्यु, बढ़ने की तेज गति हुई,
पाराशर नै ली देख नदी पै, उसकी कामदेव मै मति हुई,
कंवारी कै होया वेद्ब्यास, न्यू लग्या ऋषि कै लाणा ||

मरीचि मुनि घर कश्यप होया, करी तपस्या बण मै,
कश्यप कै घर सूर्य जन्मया, जा चमक्या गगन मै,
गुरु जगदीश नै धरया हाथ शीश पै, ललित कै बचपन मै,
गाम बुवाणी आ जाईये, जड़ै ज्ञान मिलै कण-कण मै,
यो त्रिलोकी का खेल जगत मैं, ना किसे नै जाण्या ||
</poem>
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